रानी पद्मावती कौन थी?
पद्मावत फ़िल्म पर विवाद क्यों हुआ था?
मित्रों आपको याद होगा सन 2018 में एक फ़िल्म आयी थी पद्मावत जो काफी विवादों में रही। रिलीस से पूर्व इस फ़िल्म का नाम् पद्मावती रखा गया था मगर रिलीस से पूर्व ही इस फ़िल्म का विरोध होना शुरू हो गया और इसे राजपूतों का अपमान कहा गया। शहर-शहर विरोध में प्रदर्शन होने शुरू हो गए। अंत में फ़िल्म का नाम पद्मावत रखा गया,तब जाकर फ़िल्म सिनेमाघरों का मुंह देख पायी। आइये जानते हैं पद्मिनी या पद्मावती की कहानी का सच।
रानी पद्मावती की कथा |
अलाउद्दीन खिलाजी का मेवाड़ अभियान-
रानी पद्मिनी की कहानी का आरंभ अलाउद्दीन खिलजी के मेवाड़ अभियान से शुरू होता है। मेवाड़ के विरुद्ध अभियान का तत्कालीन कारण था कि अलाउद्दीन चित्तौड़ के राणा रतन सिंह की पत्नी पद्मिनी से विवाह करने की इच्छा रखता था। चित्तौड़ के दुर्ग का घेरा डाल दिया गया और पास की एक पहाड़ी की चोटी (चित्तौड़ी ) पर अलाउद्दीन ने अपना शिविर लगाया। लगभग 5 महीने तक घेरा पड़ा रहा और इसे पाने के सारे प्रयोजन असफल रहे। वीर राजपूतों ने ऐसा कठोर विरोध प्रस्तुत किया कि उनके शत्रुओं तक ने उनकी वीरता की प्रशंसा की। परंतु जब और विरोध असंभव हो गया तो राजपूतों ने अपमान की अपेक्षा मृत्यु को अधिक अच्छा समझा। टाड के अनुसार "अक्रांता ओं को पीछे हटाने के अंतिम प्रयास में राजपूतों के प्राणपण से जूझने से पूर्व उनकी वीरांगनाओं ने 'जौहर' का सहारा लिया। दुर्ग के एक तहखाने में एक विशाल चिता रची गई। उस उजाड़ दुर्ग में यह स्थान आज भी उस निर्दयतापूर्ण काल की करुण कहानी सुनाने के लिए विद्यमान है। चिता रची जाने के बाद राजपूत रमणियाँ वहां एकत्रित होने लगीं। सुंदरी पद्मिनी ने उस समूह का नेतृत्व किया जिसमें समस्त स्त्री सौंदर्य एवं यौवन सम्मिलित था, जिसे तातारों की काम पिपासा द्वारा लांछित होने का भय था। इनको स्थान पर लाया गया जहां जलकर खाक होने वाले तत्व (अग्नि) में अपमान से त्राण पाने के लिए अंदर छोड़कर द्वार बंद कर दिया गया।" 26 अगस्त 1303 ई० को अलाउद्दीन ने चित्तौड़ के दुर्ग पर अधिकार कर लिया और चित्तौड़ का शासन प्रबंध अपने जेष्ठ पुत्र खिज्र खां को सौंप दिया। खिज्रखाँ के नाम पर चित्तौड़ का नाम खिज्राबाद कर दिया गया। यध् उल्लेखनीय है कि राजपूतों के दबाव के कारण 1311 ई० में खिज्र खाँ चित्तौड़ छोड़ने पर विवश हो गया। ऐसी दशा में अलाउद्दीन ने चित्तौड़ का प्रबंध मालदेव को सौंप दिया। राजपूतों ने हम्मीर या उसके पुत्र के नेतृत्व में एक बार फिर चित्तौड़ विजय प्राप्त कर ली और इस प्रकार वह पुनः चित्तौड़ की राजधानी बन गया।
रानी पद्मिनी की कहानी -
ऐसा कहा जाता है कि जब चित्तौड़ का घेरा पड़ा हुआ था तो एक गंभीर स्थिति उत्पन्न हुई। अलाउद्दीन ने यह इच्छा प्रकट की कि यदि शीशे द्वारा उसे पद्मिनी का चेहरा दिखा दिया जाये तो वह वापस चला जाएगा। इससे राजा रतन सिंह सहमत हो गया और पद्मिनी को शीशे द्वारा दिखाए जाने का प्रयत्न किया गया। शीशे में पद्मिनी को देखकर सुल्तान को उसे पाने की इच्छा और भी अधिक बढ़ गई और उसने रतन सिंह को बंदी बना लिया। पद्मिनी के पास यह संदेश भेजा गया कि यदि यह सुल्तान के हरम में रहना स्वीकार कर ले तो उसके पति को मुक्त कर दिया जाएगा। पद्मिनी ने यह संदेश भेजा कि वह अपने सेवकों के साथ आ रही है। 700 पालकियाँ, जिनमें वीर राजपूत सैनिक बैठे हुए थे सुल्तान के शिविर में पहुंचे और यह बताया कि उनमें रानी की पहरेदार हैं और उनकी सहायता से राजा को निकाल लाया गया । अलाउद्दीन धोखा खा गया। यद्यपि गोरा व बादल ने चित्तौड़ दुर्ग के बाहरी द्वार पर आक्रमणकारियों का सामना किया, तथापि वे दिल्ली की सेनाओं के विरुद्ध काफी समय तक न टिक सके और चित्तौड़ मुसलमानों के हाथ में आ गया। परंतु मुसलमानों के हाथों से बचने के लिए पद्मिनी ने अपना 'जौहर' कर लिया।
रानी पद्मिनी की कहानी को कुछ विद्वानों ने (जैसे श्री गौरीशंकर ओझा, डा० के० एस० लाल इत्यादि ) ने केवल एक कवि की कल्पना माना है। गौरीशंकर ओझा अपनी रचना (राजपूताना का इतिहास) में यह मत प्रकट करते हैं कि समसामयिक रचयिता जियाउद्दीन बरनी व अमीर खुसरो अलाउद्दीन-पद्मिनी की वीर कहानी का वर्णन नहीं करते। यदि इसमें कोई भी सत्यता होती तो उसकी रचनाओं में इसका कुछ विवरण अवश्य प्राप्त होता। ओझा महोदय का यह विचार है कि पद्मिनी की सारी कथा मलिक मोहम्मद जायसी से शायद उद्घृत की गई है। जिसने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक 'पद्मावत' में 16वीं शताब्दी में इस वीरगाथा की रचना की। फरिश्ता व अन्य आगामी मुस्लिम इतिहासकारों ने पद्मावत से ही कहानी ग्रहण की होगी। मगर यह बताया जाता है कि इन रचनाओं का आधार अमीर खुसरो की रचनाओं के अध्ययन पर आश्रित है। यह संकेत किया जाता है कि आमिर खुसरो पद्मिनी की कथा का वर्णन नहीं करता जबकि उसकी तुलना राजा सालोमान से करता है। वह चित्तौड़ दुर्ग में उसकी शेबा का वर्णन करता है। अमीर खुसरो अपने को खुद खुद मानता है क्योंकि यही चिड़िया शेरा की रानी बिल्कुल का समाचार राजा सालोमन के पास लाई थी यह ठीक है क्या मेरे को बहुत सी वस्तुएं छोड़ दी है जिन्हें उसका स्वामी अलाउद्दीन बुरा समझता अलादीन द्वारा जलालुद्दीन की हत्या की मान लेना अनुचित हो गए कि पद्मन की कथा पूर्ण तिथि द्वारा रचित गाता है यह स्वीकार नहीं किया जा सकता किसी ने पद्मावत कथा को अमीर खुसरो के गुरु से ग्रहण किया है जायसी की पद्मावत में वीरगाथा संबंधी विस्तार काल्पनिक कहानी का मुख्य भाग ऐतिहासिक तथ्य पर निर्भर है यदि मैं होता तो राजपूत ने अपने गीतों में सम्मिलित ने किया होता विशेषकर तब जबकि सारी कहानी राजपूतों के सम्मान पर एक लांछन (कलंक) है।
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