फिरोज तुगलक का इतिहास Firuz Tughluq History In Hindi

 फिरोज तुगलक का इतिहास

Firuz Tughluq History In Hindi

Firuz Tughluq

 

फ़ीरोज तुगलक का परिचय-  

     20 मार्च 1351 ईस्वी में  मुहम्मद तुगलक की थट्टा ( सिंध ) में मृत्यु के बाद उसका चचेरा भाई फिरोज शाह तुगलक दिल्ली का सुल्तान बना। फिरोजशाह तुगलक का जन्म 1309 ईस्वी में हुआ था व उसकी मृत्यु 1328 ईस्वी में हुई। वह गयासुद्दीन तुगलक के छोटे भाई रजब का पुत्र था। उसकी माता भट्टी राजपूत कन्या थी जिसने अपने पिता 'रणमल' ( अबूहर के सरदार ) के राज्य को मुसलमानों के हाथों से नष्ट होने से बचाने के लिए 'रजब' से विवाह करने पर सहमति प्रदान कर दी थी। जब फिरोज बड़ा हुआ तो उसने शासन-प्रबंध व युद्ध कला में प्रशिक्षण प्राप्त किया परंतु वह किसी भी क्षेत्र में निपुण न बन सका।

फ़ीरोज तुगलक का सिंहासनारोहण- 

    जब 20 मार्च 1351 ईस्वी को मुहम्मद तुगलक की मृत्यु हो गई, तो उस डेरे में पूर्ण अव्यवस्था व अशांति फैल गई जिसे सिंध के विद्रोहियों व मंगोल वेतनभोगी सैनिकों ने लूटा था व जिन्हें मुहम्मद तुगलक ने तगी के विरुद्ध संग्राम करने के लिए किराए पर रख लिया था।  इन परिस्थितियों के अधीन ही 23 मार्च 1351 ईस्वी को भट्टा के निकट एक डेरे में फिरोज का सिंहासनारोहण हुआ।

फ़ीरोज तुगलक का विरोध ( Opposition of Firoz)

   फ़ीरोज को सिंहासनारोहण के समय ही एक अन्य कठिनाई का सामना करना पड़ा। स्वर्गीय सुल्तान के नायव ( deputy ), ख्वाजा-जहां ने दिल्ली में एक लड़के को सुल्तान मुहम्मद तुगलक का पुत्र व उत्तराधिकारी घोषित करके गद्दी पर बैठा दिया। यह परिस्थिति गंभीर हो गई और इसलिए फिरोज ने अमीरों, सरदारों तथा मुस्लिम विधि ज्ञाताओं (jurists) से परामर्श लिया। उन्होंने यह आपत्ति उठाई कि मुहम्मद तुगलक पुत्रहीन था। उन्होंने इस बात पर बल दिया कि ख्वाजा-ए-जहां का अभ्यर्थी इसलिए अयोग्य है क्योंकि  वह नाबालिग है और गद्दी पर ऐसे समय नहीं बिठाया जा सकता जबकि परिस्थिति इतनी गंभीर है। यह भी कहा गया कि इस्लाम के कानून में उत्तराधिकार का कोई पैतृक अधिकार नहीं है परिस्थितियां यह मांग करती हैं कि दिल्ली की गद्दी पर एक शक्तिशाली शासक होना चाहिए। जब ख्वाजा-ए-जहां ने अपनी स्थिति दुर्बल पाई तो उसने आत्मसमर्पण कर दिया। उसकी पुरानी सेवाओं को देखते हुए फिरोज ने उसको क्षमा कर दिया और उसे समाना में आश्रय लेने की अनुमति दे दी। परंतु मार्ग में शेर खाँ, समाना के सरदार (Commandant) के किसी साथी ने उसका वध कर दिया।

एक अन्य विवाद ( An Other Controversy )-

    जिन परिस्थितियों में फिरोजशाह तुगलक गद्दी पर बैठा था वे आने वाले समय का सूचक थीं। जियाउद्दीन बरनी का यह मानना है कि मुहम्मद तुगलक ने फिरोजशाह को सुल्तान के लिए नामजद ( Nomination) किया था तथा वही उसकी दृष्टि में इस पद के योग्य था सही प्रतीत नहीं होता। सिंध में मुहम्मद तुगलक की मृत्यु के समय जो अमीर शाही खेमे में थे वे तय नहीं कर पाए थे कि गद्दी किसको मिलेगी। अंततः यह फैसला किया गया कि सेना दिल्ली की ओर प्रस्थान करे। जहां नया सुल्तान विधिवत नियुक्त होगा। इससे पता चलता है कि सुल्तान के कोई पुत्र नहीं था और ना ही उसने किसी को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया था। कहते हैं कि इस परिस्थिति में उलेमा वर्ग के कुछ लोगों ने फिरोजशाह से धार्मिक रियायतों का वायदा ले लिया। इसके बाद अमीर तथा उलेमा वर्ग दोनों ने फिरोज तुगलक को सुल्तान बनाने का निर्णय स्वीकार कर लिया। सुल्तान ने सिंध से लेकर दिल्ली तक के मार्ग में आने वाली मस्जिद, दरगाह तथा खानकाह को दिल खोलकर धार्मिक अनुदान दिए। उलेमा वर्ग नये सुल्तान के पक्ष में हो गया। दिल्ली में मुहम्मद तुगलक के निकट सम्बन्धियों द्वारा उत्तराधिकार के प्रश्न पर विद्रोह को सुगमता से दबा दिया गया। दिल्ली की सल्तनत संभालते ही उसने फिरोजशाह मलिक मकबूल को अपना वजीर बनाया तथा दोनों ने मुहम्मद तुगलक द्वारा उत्पन्न की गई मुसीबतों को समाप्त करने का प्रयास किया।

 फ़ीरोज तुगलक की गृह-नीति (Domestic Policy Of Firuz Tughluq)- 

   सामान्यतः अफरोज के शासनकाल को दो भागों में बांट सकते हैं- गृह नीति व विदेश नीति। जहां तक उसकी गृह नीति का प्रश्न है तो इस नई सुल्तान ने तत्कालीन जनता को अपनी ओर आकृष्ट करने पर बल दिया। उसने जनता पर राज्य के समस्त ऋणों को माफ करके तथा ऐसी कोई चेष्टा न करके संपन्न किया जिसका तात्पर्य उस कोष का  पुनः उगाहना हो जो ख्वाजा-ए-जहां ने अपने अभ्यर्थी को गद्दी पर बिठाते समय जनता में बांट दिया था। इस प्रकार फिरोज ने अपने शासनकाल के प्रथम वर्ष में सारा समय अपने राज्य में व्यवस्था व शांति स्थापित करने में व्यतीत किया। नए सुल्तान ने अपने सामने जनकल्याण का आदर्श रखा और उसने वह सब कार्य किए जो उनके भौतिक कल्याण व जीवन के सुख हेतु संभव रूप से कर सकता था। उसने विभिन्न क्षेत्रों में बहुत से सुधारों का आगाज किया।

फ़ीरोज तुगलक की राजस्व नीति (Revenue Policy)- 

⚫ फ़ीरोज तुगलक ने उन सभी तकावी ऋणों को रद्द कर दिया जो मुहम्मद तुगलक के समय लागू किये गये। साथ ही राज्य के अधिकारियों को आदेशित किया कि वे किसानों को आतंकित न करें।

⚫ राजस्व अधिकारियों के वेतन बढ़ा दिए।

⚫ फीरोज ने उन उपहारों की प्रथा का अन्त कर दिया जो कि राज्यपालों से उनकी नियुक्ति के समय लिए जाते थे, और वह धनराशि लेना बन्द कर दिया जो उन्हें प्रति वर्ष देनी पड़ती थी।

⚫ करों की नई व्यवस्था कुरान के अनुसार की गई और सिर्फ चार प्रकार के कर- खिराज (भूमिकर), जकात ( 2-1/2% सिर्फ मुस्लिमों से लिया जाने वाला धार्मिक कर), जजिया ( गैर मुस्लिम जनता से लिया जाने वाला कर), खम्स ( युद्ध के समय लूट के माल का पाँचवां हिस्सा )  स्वीकृत किये।

 🔴 फ़ीरोज तुगलक ने प्रथम बार जजिया कर ब्राह्मणों पर भी लगाया।

⚫ सुल्लान ने कृषि उपज पर 10% सिंचाई कर लगा दिया।

 फ़ीरोज तुगलक द्वारा सिंचाई (Irrigation) व्यवस्था के लिए नहर का निर्माण

⚫ सुल्लान ने दो नहरें- एक सतलज से और दूसरी यमुना से निकाली।

याहिया ने सुल्तान द्वारा चार नहरों के खोदे जाने का वर्णन किया हैं- प्रथम सतलज से घग्घर तक 69 मील लम्बी, । दूसरी नहर 150 मील लम्बी यमुना के पानी को हिसार तक ले जाती थी। तीसरी नहर मंडवी और सिरमौर की पहाडियों के पास से निकलकर हाँसी को जोड़ती थी, हांसी से यह अरासानी जाती थी जहाँ हिसार फीरोजाबाद के दुर्ग की नींव रखी हुई थी। चौथी नहर सुरसुती के दुर्ग के निकट घग्घर से हीरानीखेरा गाँव तक जाती थी।

⚫  इसके समय में एक सौ पचास कुएँ भी खोदे गये ।

सार्वजनिक निर्माण (Public Works) सर बुल्जले हेग का यह कथन सत्य ही प्रतीत होता है "कि फिरोज का निर्माण के लिए ऐसा अत्याधिक चाव रोमन सम्राट अगस्टस के बराबर था,यदि उससे अधिक नहीं था।"

⚫  फ़ीरोज तुगलक के राज्य का मुख्य वास्तुकार 'मलिक गाजी शहना' था। अबुल हक उसका सहायक था।

मौर्य सम्राट अशोक महान के दो स्तम्भों को उनके मूल स्थान से अलग पुनः स्थापित किया

👉 टोपरा वाले स्तंभ को महल तथा फीरोजाबाद की मस्जिद के निकट पुनः स्थापित कराया गया।

👉 मेरठ वाले स्तंभ को दिल्ली के वर्तमान बाड़ा ( हिंदू राव अस्पताल के निकट ) एक टीले 'कश्के शिकार या आखेट- स्थान' के पास पुनः स्थापित कराया गया। 

न्याय सम्बन्धी सुधार ( Judicial Reforms )

🔴 फ़ीरोज तुगलक ने अंग-भंग जैसे अत्याचारी प्रावधान को खत्म कर दिया।

🔴 सुल्तान ने एक विवाह विभाग भी बनवाया।

🔴  फ़ीरोज ने एक रोजगार विभाग ( Employment Bureau )  भी खोला।

फ़ीरोज तुगलक के शिक्षा सम्बन्धी सुधार ( Education Reforms )

⚫ जियाउद्दीन बरनी व शम्से सिराज अफीफ ने फ़ीरोज तुगलक का संरक्षण प्राप्त कर अपनी रचनाएँ तैयार की।

👉 फ़ीरोज तुगलक की जीवनी 'फतूहात-ए-फीरोज शाही के नाम से प्रसिद्ध है।

 👉 जब फ़ीरोज तुगलक ने नगरकोर्ट पर विजय प्राप्त की तो, बहुत सी संस्कृत पुस्तकें उसके हाथों में आई।  इनमें से 300 पुस्तकों का दलायल-ए-फीरोज शाही के शीर्षकाधीन फारसी भाषा में आज-उद्दीन खालिद द्वारा अनुवाद किया गया।

दास प्रथा------

 👉फिरोज तुगलक को दासों को जुटाने का बहुत शौक था। 

👉 1200 slaves became artists of various kinds. 40000 slaves were ready to protect and serve the Sultan's palace. There were 1,80000 in the city and all the jagirs, for whose arrangement and comfort the Sultan used to make special arrangements.

👉 इस दास संस्था ने देश के केंद्र भाग में अपनी जड़ें जमा ली और सुल्तान इसका उचित नियमन अपना कर्तव्य समझता था। "सुल्लान ने एक पृथक कोष, एक पृथक जाऊ-शुगूरी ( Jao Shighr ) , एक सहायक जाऊ-शुगूरी और एक पृथक दीवान स्थापित किया।

🔴  दास प्रथा इस्लाम के प्रचार का सबसे आसान माध्यम था, क्योंकि प्रत्येक दास इस्लाम धर्म स्वीकार कर लेता था।

 सेना (Army )

⚫ सेना सामन्ती आधार पर गठित थी।

⚫ सेना के स्थायी सैनिक भूमि के अनुदान पाते थे।

⚫ अस्थायी सैनिकों ( गैर-वजह ) को नगद वेतन मिलता था।

⚫ Firoz's army consisted of eighty to ninety thousand horsemen.

⚫ फ़ीरोज तुगलक ने सेना में भ्रष्टाचार के मुद्दे को अनदेखा किया। सुल्तान ने एक सैनिक से उसकी कठिनाई का कारण पूछा और उसे यह पता चला कि वह सिपाही अपने घोड़े को उस समय तक आगे नहीं बढ़ा सकता था जब तक कि वह निरीक्षक को एक स्वर्ण टंका न दे। सुल्तान ने निरीक्षक के विरुद्ध कोई दंडात्मक आदेश देने की बजाय अपने पास से उस सिपाही को एक स्वर्ण टंका दिया जिससे कि वह उस सिक्के को निरीक्षक को देकर अपना कार्य चला सके।

सिक्के (Coins)------

👉 फ़ीरोज तुगलक ने दो सिक्के आधा ( 1/2 जीतल) और बिख ( 1/4 जीतल जारी किए। इन सिक्कों में ताँबा व चांदी मिश्रित थी।

👉 कजरशाह फ़ीरोज तुगलक का टकसाल का स्वामी था।

दरबार ( Court )

फ़ीरोज तुगलक के 36 शाही दरबार थे।

धार्मिक नीति ( Religious Policy )

🔴  फ़ीरोज एक कट्टर सुन्नी मुसलमान था। उसने उलेमाओं को शासन में ऊँचा स्थान दिया।

🔴 उसने निर्धन मुस्लिम कन्याओं के विवाह का प्रबन्ध किया। 

🔴 फ़ीरोज हिंदुओं के प्रति कठोर था। उसने अनेक मन्दिरों का संहार किया। हिन्दुओं का वध किया। मन्दिरों के स्थान पर मस्जिदें बनवाईं।

🔴 फ़ीरोज ने ज्वालामुखी मन्दिर व जगन्नाथ मन्दिरों को नष्ट कर दिया।

🔴 सुल्लान ने हिन्दुओं को जबरन ईस्लाम धर्म में बदला।

🔴Firoz also added the name of the Egyptian Caliph to his name on the coins.

फ़ीरोज तुगलक की विदेश नीति ( Foreign Policy )

1- बंगाल ( Bengal ) - हाजी इलियास बंगाल का स्वतन्त्र शासक था। फ़ीरोज तुगलक ने बंगाल की प्रजा की सहानुभूति प्राप्त कर हाजी इलियास को पराजित किया (1353)। परन्तु बंगाल को बिना विलय किए वह वापस लौट आया। सुल्लान ने एक बार पुनः 1359  में बंगाल के बिरुद्ध अभियान किया। वह मार्ग में छः मास तक गोमती नदी के किनारे जफराबाद में ठहरा और वहाँ  मुहम्मद तुगलक की स्मृति में जौनपुर नगर स्थापित किया, क्योंकि मुहम्मद तुगलक का नाम जूना खाँ था।

2- जाजनगर (Jajnagar )- बंगाल से से दिल्ली वापस आते समय, सुल्तान ने जाजनगर (वर्तमान उड़ीसा) को जीतने का निश्चय किया। जाजनगर पर आक्रमण कर तमाम मन्दिरों को नष्ट किया।

3- नगरकोट-  नगरकोट का घेरा डाल फ़ीरोज ने वहाँ के शासक को अधीनता स्वीकार करने पर विवश किया। नगर में प्रवेश कर ज्वालामुखी मन्दिर की मूर्तियां तोड़ डालीं।

4-सिन्ध- फ़ीरोज तुगलक ने सिन्ध के शासक जाम बबानिया को पराजित कर उसके भाई को वहाँ शासक बना दिया तथा बहुत सा कर प्राप्त 'किया।

फ़ीरोज तुगलक की मृत्यु ( Death Of Firuz Tughluq ) 

Fateh Khan, the eldest son of Firoz Tughlaq, died in 1374, due to which he suffered a lot. He made his son Muhammad an assistant in the administration, but he turned out to be of a luxurious nature. Disappointed, Firoz appointed Ghiyasuddin Tughlaq Shah (Fateh Khan's son) as his successor. Firoz Tughlaq died on 20 September 1388 AD at the age of 80.

 🔴 खाने जहाँ मकबूल- यह तेलिंगाना का एक हिन्दू था जिसका नाम कुट्टु या कुन्नू था। मुहम्मद तुगलक के समय वह मुसलमान बन गया था। फीरोज तुगलक ने उसे "विश्व का स्वामी" की उपाधि प्रदान की। मकबूल महान राजनीतिज्ञ के साथ-साथ एक अय्यासी पुरुष भी था। उसके हरम में 2000 स्त्रियाँ थीं। उसकी मृत्यु 1370 में हुई। 

 

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