हड़प्पा सभ्यता का सामाजिक और आर्थिक जीवन
Social and Economic Life of Harappan Civilization
हड़प्पा सभ्यता में परिवार सामाजिक जीवन का मुख्य आधार था। परिवार में सब लोग प्रेमपूर्वक रहते थे। परिवार का मुखिया माता को माना जाता था यानि हड़प्पा सभ्यता में समाज मातृसत्तात्मक था।मोहनजोदड़ो की खुदाई से सामजिक विभाजन के संकेत प्राप्त होते हैं।सम्भवतः समाज चार वर्णों में विभाजित था- विद्वान-वर्ग, योद्धा, व्यापारी तथा शिल्पकार और श्रमिक।
- विद्वान वर्ग के अंतर्गत सम्भवतः पुजारी, वैद्य, ज्योतिषी तथा जादूगर सम्मिलित थे।
- समाज में पुरोहितों का सम्मानित स्थान था।
- हड़प्पा सभ्यता में मिले मकानों की विभिन्नता के आधार पर कुछ विद्वानों ने समाज जाति प्रथा के प्रचलित अनुमार लगाया है।
- खुदाई में प्राप्त तलवार, पहरेदारों भवन तथा प्राचीरों अवशेष मिलने से वहां क्षत्रिय जैसे किसी योद्धा वर्ग के अनुमान लगाया जाता है।
- तीसरे वर्ग में व्यापारियों तथा शिल्पियों जैसे पत्थर काटने वाले, खुदाई करने वाले, जुलाहे, स्वर्णकार, आदि को शामिल किया है।
- अंतिम वर्ग में विभिन्न अन्य व्यवसायों से जुड़े लोग जैसे- श्रमिक, कृषक, चर्मकार, मछुआरे, आदि।
- कुछ विद्वान हड़प्पा सभ्यता में दास प्रथा के प्राचलन का भी अनुमान लगते हैं।
- परन्तु एस. आर. राव ने दास प्रथा के अस्तित्व को स्वीकार नहीं किया है।
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हड़प्पा सभ्यता में नारी का स्थान Woman's place in Harappan civilization
हड़प्पा सभ्यता में नारी का बहुत ऊँचा स्थान था।वह सभी सामाजिक धार्मिक कार्यों तथा उत्सवों में पुरुषों समान ही भाग थी।अधिकांश महिलाऐं घरेलु कार्यों से जुडी थीं। पर्दा प्रथा प्रचलन नहीं था।
सिंधु सभ्यता के लोगों का भोजन The food of the people of the Indus civilization
- सिंधु सभ्यता शाकाहारी तथा माँसाहारी दोनों प्रकार का भोजन ग्रहण करते थे।
- गेहूँ, जौ, चावल, तिल, दाल आदि प्रमुख खाद्यान्न थे।
- शाक-सब्जियां, दूध तथा विभिन्न प्रकार फलों खरबूजा, तरबूज, नीबू, अनार, नारियल आदि का सेवन करते थे।
- मांसाहारी भोजन में सूअर, भेड़-बकरी, बत्तख, मुर्गी, मछलियां, घड़ियाल आदि खाया जाता था।
सिन्धुवासियों के वस्त्र Indus clothing
- सिन्धुवासी सूती तथा ऊनी दोनों प्रकार के वस्त्रों का प्रयोग करते थे।
- स्त्रियां जूड़ा बांधती थीं तथा पुरुष लम्बे-लम्बे बाल तथा दाढ़ी-मुँछ रखते थे।
हड़प्पा सभ्यता आभूषण Harappan Civilization Jewelry
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- महिलाऐं तथा पुरुष दोनों ही आभूषणों का इस्तेमाल करते थे जैसे- अंगूठी, कर्णफूल, कंठहार आदि।
- हड़प्पा से सोने के मनकों वाला छः लड़ियों का एक सुन्दर हार मिला है।
- छोटे-छोटे सोने तथा सेलखड़ी निर्मित मनकों वाले हार बड़ी संख्या में मिले। हैं
- मोहनजोदड़ो से मार्शल ने एक बड़े आकर का हार प्राप्त किया है जिसके बीच गोमेद के मनके हैं।
- कांचली मिटटी, शंख तथा सेलखड़ी की बानी चूड़ियां मिली हैं।
- सोने, चांदी, तथा कांसे की चूड़ियां, मिटटी और तांबे की अंगूठियां भी मिली हैं।
- मोहनजोदड़ो की स्त्रियां काजल, पाउडर, तथा श्रृंगार प्रसाधन का प्रयोग थीं।
- चन्हूदड़ो से लिपस्टिक साक्ष्य प्राप्त हुए हैं।
- शीशे, कंघी, का भी प्रयोग था।
- तांबे दर्पण, छूरे, कंघें, अंजन लगाने की शलाइयाँ, श्रृंगादान आदि हैं।
- आभूषण बहुमूल्य पत्थरों, हाथी-दांत, हड्डी और शंख के बनते थे।
- खुदाई में घड़े, थालियां, कटोरे, तश्तरियां, गिलास, चम्मच आदि बर्तन हैं आलावा चारपाई, स्टूल, चटाई प्रयोग था।
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सिन्धुवासियों के मनोरंजन के साधन Entertainment means for Indus people
- पासा इस सभ्यता के लोगों का प्रमुख खेल था।
- हड़प्पा से मिटटी, पत्थर तथा मिटटी के बने सात पासे मिले हैं।
- सतरंज जैसे कुछ गोटियां भी मिली हैं जो मिटटी, शंख, संगमरमर, स्लेट, सेलखड़ी आदि से बनीं हैं।
- नृत्य भी प्रिय साधन था जैसा कि मोहनजोदड़ो से कांस्य निर्मित नृत्य मुद्रा में मिली मूर्ति प्रतीत होता है।
- जंगली जानवरों शिकार भी मनोरंजन साधन था
- मछली फंसना तथा चिड़ियों शिकार करना नियमित व्यवसाय था।
- मिटटी की बानी खिलौना गाड़ियां मिली हैं जिनसे खेलते होंगे।
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हड़प्पा सभ्यता के बाट Weights of Harappan Civilization
- उत्खनन में बड़ी संख्या में पत्थर के बाट मिले हैं। सामन्यतः ये बाट चकमक ( चर्ट ), सेलखड़ी, चूना-पत्थर, स्फटिक, स्लेट, सूर्यकान्त मणि ( जास्पर ), तथा अन्य पत्थरों से बांये गए हैं। लेकिन चकमक ( चर्ट ) से बने बाटों की संख्या अधिक है।
- बाट क्रमबद्ध रूप से 1,2,4,8 से 64 तक और फिर 160 तक जाते थे। उसके बाद 16 के दशमलव गुणांकों में 320, 640, 1600, 3200, 6400, 8000 ( अर्थात 1600 X 5 ) और 12800 ( अर्थात 1600 X 8 ) में आगे बढ़ती है।
- सबसे अधिक प्रचलित 16 मूल्य का बाट था जिसका वजन 13.5 से 13.7 ग्राम था
- यहाँ के निवासी घनाकार बांटों का प्रयोग करते थे।
- तराजू के भी प्रयोग के साक्ष्य हैं।
- दशमलव पद्धति से वे परिचित थे।
- इसके अतिरिक्त उत्खन में वहुसंख्यक अस्त्र-शस्त्र, औजारों व हथियारों के नमूने मिले हैं। युद्ध अथवा शिकार में तीर-धनुष, परशु, भाला, कटार, गदा, तलवार आदि का प्रयोग होता था।
- औजार और अस्त्र-शस्त्र सामन्यतः ताँबे तथा कांसे धातु के बने होते थे।
- बरछा, कुल्हाड़ी, बसूली, आरा आदि का प्रयोग होता था।
हड़प्पा सभ्यता के लोगों का आर्थिक जीवन Economic life of Harappan people
सिंधु सभ्यता एक नगरीय सभ्यता थी और कृषि,पशुपालन, शिल्प-उद्योग, व्यापार उनके जीवन यापन के मुख्य आधार थे। हम उनके आर्थिक स्रोतों का क्रमबद्ध अध्ययन करेंगें ---
कृषि-
- सिंधु सभ्यता के लोगों के जीवन का मुख्य आधार कृषि कार्य था। सिंधु और उसकी सहायक नदियां प्रतिवर्ष अपने साथ उपजाऊ मिटटी बहाकर लाती थी जिनसे पैदावार काफी अच्छी होती थी।
- सिन्धुवासियों का प्रमुख खाद्यान्न गेहूं तथा जौ थे। खुदाई में गेहूं तथा जौ के दाने मिले हैं।
- सिंधु क्षेत्र के लोग धान की खेती से अपरिचित थे।
- लोथल तथा रंगपुर से धान की खेती के साक्ष्य मिले हैं।
- धान की खेती का स्पष्ट प्रमाण हुलास से मिलता है परन्तु यह उत्तरकालीन है
- लोथल तथा रंगपुर बाजरे की खेती के भी प्रमाण मिले हैं।
- हड़प्पा में मटर तथा तिल खेती होती थी।
- सर्वप्रथम हड़प्पावासियों ने ही कपास की खेती प्रारम्भ की।
- ऐतिहासिक काल में मेसोपोटामिया में कपास के लिए 'सिंधु शब्द' का प्रयोग किया जाने लगा तथा यूनानियों ने इसे सिन्डन ( sindon ) कहा जो सिंधु का ही यूनानी रूपान्तर है।
- सिन्धुवासी फलों भी कसरते थे , केला, नारियल , खजूर , अनार, नीबू, तरबूज आदि की खेती करते थे।
- कालीबंगन से जुटे हुए खेत के साक्ष्य प्राप्त हुए हैं।
- मोहनजोदड़ो से मिटटी के बने एक हल का प्रारूप तथा बनावली से मिटटी के बने हल का पूरा प्रारूप प्राप्त है।
- सिंधु निवासी एक साथ दो फसलें उगाने की विधि से परिचित थे।
- लोथल से वृत्ताकार चक्की के दो पाट भी मिले हैं। ऊपर वाले पाट आनाज डालने के लिए एक छेद बनाया गया है।
पशुपालन--
कृषि के साथ-साथ सिन्धुवासी पशुपालन भी करते थे। सिंधु सभ्यता से प्राप्त मृदभांडों और मोहरों पर पायी गयी चित्रकारी तथा प्राप्त जीवाश्मों के आधार पर उनके पालतू पशु-पक्षियों के विषय में जानकारी मिलती है।
- कूबड़दार वृषभ का अंकन मुहरों पर सर्वाधिक मिलता मिलता है।
- बैल, गाय, भैंस, कुत्ते, सूअर, भेड़, बकरी, हिरन, खरगोश, आदि भी पीला जाते थे।
- मुर्गा, बत्तख, तोता, हंस आदि पक्षी भी पीला जाते थे।
- ऊंट तथा घोड़े का अंकन मुहरों पर नहीं मिलता। परन्तु मोहनजोदड़ो, हड़प्पा, कालीबंगन, सुरकोटडा के स्थलों से एक कूबड़दार ऊंट का जीवाश्म मिला है।
- सुरकोटड़ा, लोथल, कालीबंगन आदि से घोड़े की मृण्मूर्तियां, हड्डियां, जबड़े आदि के अवशेष मिले हैं।
- अतः घोड़े से हड़प्पा सभ्यता के लोग परिचित थे।
सिंधु सभ्यता के शिल्प तथा उद्योग-धंधे Crafts and Industries of the Indus Civilization
उत्खनन से प्राप्त उपकरणों ( तकली, सुई आदि ) से पता चलता है कि बुनना एक प्रमुख उद्योग था।
शाल तथा धोती यहाँ के निवासियों के प्रमुख वस्त्र थे तथा ये लोग वस्त्रों की कढ़ाई तथा रंगाई की विधि से परिचित थे।
चाक पर मिटटी के वर्तन बनाना, खिलौने बनाना, मुद्राओं का निर्माण करना, आभूषण एवं गुरियों का निर्माण करना आदि कुछ प्रमुख उद्योग-धंधे थे।
धातुओं में उन्हें सोना, चांदी, तांबा, काँसा तथा सीसा का उन्हें ज्ञान था। तांबे तथा कांसा का प्रयोग मानव एवं पशु मूर्तियां बनाने में भी किया जाता था।
शंख, सीप, घोंघा, हाथी दांत से भी उपकरणों का निर्माण होता था।
सिंधु सभ्यता के बने पक्के मकानों से पता चलता है कि ईंट उद्योग बड़े पैमाने पर होगा।
नावों का निर्माण करना भी यहाँ के लोगों को आता था।
चन्हूदड़ो तथा लोथल मनका बनाने के प्रमुख केंद्र थे।
चन्हूदड़ो में सेलखड़ी मुहरें तथा चर्ट के बटखरे ( बाट , बजन ) भी तैयार किये जाते थे।
बालाकोट तथा लोथल का सीप उद्योग भी सुविकसित था।
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सिंधु सभ्यता में व्यापार तथा वाणिज्य Trade and Commerce in Indus Civilization
सिन्धुवासी आंतरिक और वह्य व्यापार दोनों में रूचि लेते थे। हड़प्पा तथा मोहनजोदड़ो व्यापार के प्रमुख केंद्र थे। सैंधव निवासी बहुत सी वास्तुओं आयात करते थे-- सोना- मैसूर तांबा- राजस्थान,बलूचिस्तान तथा मद्रास से सीसा- अजमेर से वर्तन रंगने का गेरुआ रंग - फारस की कड़ी स्थित हार्मुज से बहुमूल्य पत्थर- कश्मीर एवं काठियावाड़ से चांदी- अफगानिस्तान , आर्मेनिया तथा ईरान से लाजवर्द मणि- अफगानिस्तान , आर्मेनिया तथा ईरान से लोथल के बंदरगाह से ताँबा तथा हाथी-दांत की वस्तुएं मेसोपोटामिया के नगरों को भेजी जाती थीं। मोहनजोदड़ो से प्राप्त एक मुहर तथा ठीकरे ( मिटटी के वर्तन का टुटा टुकड़ा ) से सुमेरियन नावों के चित्र अंकित मिले हैं जिससे समुद्री व्यापार संकेत हैं। सुमेरियन लेखों से तीन स्थानों - मेलुहा, दिल्मुन ( तिल्मुन), तथा मगन (मकन) का उल्लेख मिलता है। मेलुहा की पहचान सिंध प्रदेश से गयी है। यहाँ से उर्र के व्यापारी सोना, ताँबा, कार्निलियन ( लाल पत्थर ), लारजवर्द मणि, हाथी-दांत, की वस्तुएं, खजूर, विविध प्रकार की लकड़ियां विशेषकर आबनूस ( काली लकड़ी ) , मोर पक्षी आदि प्राप्त करते थे। मेसोपोटामिया में प्रवेश के लिए उर्र प्रमुख बंदरगाह था। चन्हूदड़ो तथा लोथल में मनके बनाने का कारखाना था। दिल्मुन की पहचान बहरीन द्वीप से की गयी है। मगन की पहचान बलूचिस्तान के मकरान तट से की गयी है। सैन्धव सभ्यता की उन्नति में विदेशी व्यापार का प्रमुख योगदान था। इसके अतिरिक्त सोवियत तुर्कमानिया, मेसोपोटामिया, ईरान आदि से व्यापार होता था। सिक्कों का प्रचलन नहीं था , क्रय-विक्रय वास्तु विनिमय द्वारा होता था। मोहनजोदड़ो तथा लोथल से हाथी-दाँत तराजू के पलड़े मिले हैं। स्थल पर बैलगाड़ियों, हाथियों तथा खच्चरों से सामान ढोया जाता था। नावों द्वारा जल मार्गों से व्यापार किया जाता था।
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